कोई न हो निराश - तो समझो दीवाली है।
पूरी हो सबकी आस - तो समझो दीवाली है।
दिल-दिल से मिलके दीप जले, उसी रौशनी से,
हर घर में हो प्रकाश - तो समझो दीवाली है।
मन में असंख्य सर्पों का ज़हर लिए हुए।
झूठी हँसी दिखाके दान करते हैं दीये।
मीठा न बोल पाए, जीवन में कभी जो,
फिरतें हैं वही हाथों में मिठाइयाँ लिए।
मिटे विरोधाभास - तो समझो दीवाली है।
पूरी हो सबकी आस - तो समझो दीवाली है।
आँखों से बहे आँसू मगर मुस्कान में।
भूखा न सोये कोई कभी इस जहान में।
महलों की रौशनी को खुद छोड़ लक्ष्मी,
कहे झोपड़ी को आकर, चुपके से कान में।
मै आ गई तेरे पास - तो समझो दीवाली है।
पूरी हो सबकी आस - तो समझो दीवाली है।
इंसानियत की बात, हर इंसान में रहे।
सत्मार्ग छोड़के, न कोई लोभ में बहे।
अब तक अलग-अलग रहे, पाए न कुछ भी हम,
मन के कपट भूला के यदि हर कोई कहे।
मुझे तुमपे है विश्वास - तो समझो दीवाली है।
पूरी हो सबकी आस - तो समझो दीवाली है।
-डॉ. आदित्य शुक्ल
16 अक्तूबर 2006
|