पुरखों का वरदान दिवाली
अपनों से पहचान दिवाली
एक बरस में ही आती है
दो दिन की मेहमान दिवाली
हँसी खुशी की एक लहर है
पीड़ा से अनजान दिवाली
लड्डू पेड़े गुझिया बरफ़ी
इक मीठा पकवान दिवाली
जीवन की आपाधापी में
प्रश्न एक आसान दिवाली
खुशियों से घर भर जाएगा
ऐसा है अनुमान दिवाली
चाँद सितारे अंबर में हैं
धरती का अभिमान दिवाली
अपनों से जब दूर हों बैठें
लगती है सुनसान दिवाली
मधुर क्षणों की अनुभूति ये
कविता का उन्वान दिवाली
-अनूप भार्गव
1 नवंबर 2006
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