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दीपावली महोत्सव
२००४

दिये जलाओ
संकलन

सद्भावना का दीपक

 

दीपक जलाकर अँधेरा मिटा दो
गहन तम है छाया उसको हटा दो।
दीपों की लडियों में तारे बुला कर
धरा औ' गगन का
अंतर मिटा दो।

प्रकाशित हज़ारों दीपों की लौ से
सपनों के सुंदर अंकुर उगा दो।
अँधेरे पे बनकर स्वयं आज ज्योति
अंतर में प्रज्ञा की
आभा जगा दो।

जीवन का अँधियारा, क्षण भर में टूटे
जन जन में जिज्ञासा की ऐसी जगा दो।
उजाला यों दमके से तिमिर जाल तड़के
उदासी उड़े, मौन
मुखरित करा दो।

तरलता से ऐसी ज्योति जलाओ
मधुरता की ऐसी गंगा बहाओ
कही बैर अब बच न पाए धरा पर
सदभावना का
दीपक जला दो।

—बृजेश कुमार शुक्ल

नाच न आवे

धोबी ने
दीपावली का दिया जलाया
और धोबन से बोला,
गाँव में लगा था
दिवाली का मेला
गया तो मैं था अकेला
लेकिन सोचता रहा तेरे ही बारे
देख क्या खरीदा मैंने
गंगा किनारे।
अब लगा ज़रा ठुमका
पहन के यह कंगना,
"नाच तो मैं दूँ,
बोली धोबन,
"–लेकिन टेढ़ा है अँगना।"

—अगस्त्य कोहली

शुभ बेला

दीवाली की शुभ बेला पर
आओ हम सब मिलकर
एक दीप जलाए।
जो सदैव इमानदारी,
प्रेम, प्रीत और
शिक्षा का उजियारा फैलाए।
जो हटा दे
जात, पात, और
उंच, नीच का अँधियारा
इस निश्छल मन से
दीवाली की शुभ बेला पर
आओ हम सब मिलकर
एक ऐसा दीप जलाए
जो सब के मन उज्वल कर दें।

—संजीव कुमार बब्बर

    

 

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