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								दीपावली महोत्सव 
                                २००४
                                 
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रोशनी से 
जगमग है दुनिया, 
हर आँगन में जल रहा है दिया, 
दीवाली से रोशन है आलम सारा, 
गूँज उठी है पटाखों की लड़ियाँ 
कितनी चमक है उन महलों में 
कितनी खुशी है उन चेहरों में, 
जो लक्ष्मी के स्वागत के लिए, 
बहा रहे हैं दौलत की नदियाँ 
महलों से निकल कर बाहर देखो, 
बच्चे नंगे आज भी है, 
भूख से तड़पने वाले तड़प ही रहे हैं, 
उनके लिए क्या होली, क्या दीवाली है 
करोड़ों में जलते हैं पटाखे 
गूँजती है चारों ओर इनके धमाके 
रंग बिरंगी इन त्योहारों में 
दब गई गरीबों की चीखें 
ओ समाज के दौलतवालों 
इस जलती दुनिया को बचा लो 
जिस रौनक में तुम बैठे हो, 
थोड़ी सी उन घरों में भी डालो 
जहाँ अंधकार में हैं दिन और रात, 
उनके भी आँगन में दिये जलाओ, 
जो धुआँ तुम पटाखों से उड़ाते हो, 
उन गरीबों के चूल्हे से उड़ाओ 
 
— नागराज गिरमल 'सिफर' | 
          
                         
                        
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दिये जलाओ 
                                  संकलन 
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 दुल्हन-सी सज के 
दीपावली  | 
          
                         
                        
                          
 
                          
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दुल्हन सी सज के दीपावली  
काली रात का डर नहीं किसी को यहाँ  
सबके हिस्से का उजाला  
द्वार पर है मुस्कुराता  
घर के आँगन में सजी है रंगोली 
और चारों ओर झिलमिला रहे हैं दीप  
लो आ गई है  
दुल्हन सी सज के दीपावली  
छट गए हैं बादल दुखों के सब के  
और चारों ओर खुशियों की है बरसात  
द्वार पर लगे हैं तोरन फूलों के  
करते है स्वागत सब का खुशबू लुटाकर  
लो आ गई है  
दुल्हन सी सज के दीपावली  
इन सब के बीच एक नन्हा सा ही सही  
हर कदम पर मेरे साथ साथ  
चल रहा है मेरे विश्वास का एक दीप  
जिससे मेरा अस्तित्व है जगमगाता 
लो आ गई है  
दुल्हन सी सज के दीपावली 
 
— मीना छेडा 
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 मंगलमय हो यह 
दीवाली 
मंगलमय हो यह दीवाली 
सकल जगत में खुशियाँ छाएँ 
हृत से अंधकार का निर्गम 
घर–घर दीप जले। 
कर प्रकाश का अभिनंदन हम 
तमस भगा लाएँ आशा 
किरणों के ही आवर्तन में 
जलती दीपों की माला। 
आओ करें सभी अभिनंदन 
किरणों की लेकर माला 
अंतर्मन से करें समर्पित 
"अहम्–स्वयं" की परिभाषा। 
यज्ञ बने दीपों का कुंतल 
हव्य आत्म की हों त्रुटियाँ 
जग–मग तारें बनें पुरोहित 
यज्ञ–कुंड हो ध्रुव तारा। 
होम–धूम्र लेकर मलयानिल 
दिशा–दिशा में बिखरे 
दसो दिशा सुगंध छा जाए 
कली सुमन जब निखरे। 
आ मिल सब मंगल गाएँ 
नए वर्ष का कर अभिनंदन 
धन की वर्षा हो घर–घर में 
जागे प्रकाश अंतर्मानस में। 
नूतन वर्ष प्रकट हो फिर से 
लेकर नवल सबेरा 
नव–आलोक प्रकाशित हो फिर 
नई–नई लेकर आशा। 
 
—लालजी वर्मा 
  
  
आत्मविश्वास 
का दीप  
 
अमावस्या की इस पावन रात्रि में 
तिमिर को भेद आगे बढ़ूँगा, 
जल उठा है आत्मविश्वास का दीप 
प्रलय की आधियों से फिर लढ़ूँगा। 
 
दीप कैसा हो कहीं भी हो 
रवि का अवतार है वह,  
दिवस मे कुछ भी नही 
पर तम का पहरेदार है वह। 
 
दूर से बस लगता है 
एक फूँक का वह तमाशा,  
देह से लग जाए 
तो विप्लव अंगार है वह। 
 
नहीं करता चुपकर बैठ वह 
देखन भोर का फेर 
परिवर्तन कर, 
समय के साँचे को, कर देता है भेद। 
 
आत्मविश्वास का यह दीप 
आओ हर हृदय मे ऐसे जलाएँ 
मनवांछित पूर्ति कर 
जीवन को सुफल बनाएँ। 
 
—रवीन्द्र मोहन दयाल  
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