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दीपावली महोत्सव
२००४
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दीवाली की
वह धुँधली शाम
किले के चारो ओर
पटाखों की गूँज
जैसे कि किला ही टूट कर गिर रहा हो।
तुम्हारी खिलखिलाहट
फुलझरी सा बरसना
बनारसी सारी का आसमान रँगना
हल्के पैरों से क्या कुछ कहना
और तुमने छुपाई आज फिर
चाँद और तारे
चंद शब्द
चंचल मुस्कान
झिलमिलाती आवाज़
कभी हमारे बीच
चल पड़ी फिर
चल पड़ी फिर
ग्वालियर की तमाम सड़कें
धूल से सने
एक किसी रात का छूना
एक किसी चुप्पी का जगना
तुम्हारी सजल आँखों में
यादों की दीवाली लिए
चली आई
फिर से।
— डा अमिताभ मित्र
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ये पर्व दिवाली
ये पर्व दीवाली
जग मग करते दीपों का है,
पर्व दीवाली
खुशी और उल्लास भरा है,
पर्व दीवाली
हर आँगन को रोशन करता,
खुशहाली से दामन भरता,
आशाओं के दीप जलाता,
घर में उजियारा फैलाता,
नई सुबह का है प्रतीक यह
पर्व दीवाली।
जीवन में उमंग जगाता,
हर आँगन में दीये सजाता,
हर मन में मुस्कान लुटाता,
भारत की पहचान कराता,
भारत माँ का ये संदेश है,
पर्व दीवाली।
मेरे मन में भी आशा के दीप जलाता
आता है हर साल सुनहरा
पर्व दीवाली।
—अमन गर्ग
रोशनी
लाने वाली है दीवाली
सभी होठों पर हंसी
जैसे जीवन के टिमटिमाते सितारे
रात के अँधेरे में
फैला देती है
फौवारे रोशनी की
सभी दिलों को
जैसे बना दे जवाँ।
—हेमा
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