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दीपावली महोत्सव
२००४

दिये जलाओ
संकलन

आए फिर से दीवाली

 

बहुत दिन हुए, गाँव की माटी की गंध लिए
बहुत दिन हुए, ठंडी पुरवा की सुगंध लिए
बहुत दिन हुए, अपनों के संग बातों का आनंद लिए
मन ने आज यादों की बारात निकाली,
घर आऊँ क्या?
आए फिर से दीवाली,
घर आऊँ क्या?
1
बहुत दिन हुए, गौरैया का संगीत सुने
बहुत दिन हुए, नदी किनारे माँझी का गीत सुने
बहुत दिन हुए, दौड़ में कछुआ की जीत सुने
जिं.दगी ने आज भागमभाग से फुरसत पा ली,
घर आऊँ क्या?
आए फिर से दीवाली,
घर आऊँ क्या?
1
बहुत दिन हुए, दोस्तों के संग नदी में नहाए
बहुत दिन हुए, ठहाके लगाए
बहुत दिन हुए, ह्यसच कहता हूँहृ,आँसू बहाए
आज दिल का कोना है खाली
घर आऊँ क्या?
आए फिर से दीवाली,
घर आऊँ क्या?
1
बहुत दिन हुए, कोयल की कूक सुने
बहुत दिन हुए, जाड़ों की धूप लिए
बहुत दिन हुए, अपनी गाय का दूध पिए
हँसी शाम में आज छाए है लाली,
घर आऊँ क्या?
आए फिर से दीवाली,
घर आऊँ क्या?
1
बहुत दिन हुए, थामे मन का दामन
बहुत दिन हुए, देखे घर का आँगन
बहुत दिन हुए, देखे प्यारी तिरछी चितवन
आम्र बौर से लदी झुक गए ड़ाली,
घर आऊँ क्या?
आए फिर से दीवाली,
घर आऊँ क्या?
1
—मंजुल शुक्ला

तुम्हें दूँगी दीवाली

वक्त की हर एक चालाकी
मैं समझना चाहती हूँ
दैव के हर छल निरंतर
मैं समझना चाहती हूँ
सच बदलना चाहती हूँ
1
चार भूखे पेट बच्चे
और चावल एक मुठ्ठी
कौन भूखे पेट सोया
कैसे रोया माँ का अंतर
कठिनतम ऐसे गणित का
हल समझना चाहती हूँ
सच बदलना चाहती हूँ
1
थक गए गांडिव धारी
थक गए केशव मुरारी
तुम ज़रा बैठो, विराम लो
दे मुझे निज–रथ की वल्गा
मैं तुम्हारे युद्ध में
गांडीव धरना चाहती हूँ
सच बदलना चाहती हूँ
1
राम–रावण–रण निरंतर
मैं थकी बन मूक दर्शक
पूछना है आदि कवि से
युद्ध का पर्याय–अंतर
सत्–असत् की बात पूरी
खुद परखना चाहती हूँ
सच बदलना चाहती हूँ
1
तोड़ कर मंदिर जगत के
मुक्त अपने राम को कर
उस कठिन कैलाश ऊपर
साधना में लीन शिव के
साथ धरना चाहती हूँ
सच बदलना चाहती हूँ
1
धर्म के अपवाद सारे
हैं तो बस हित में तुम्हारे
कर्ण का माधव न कोई
सूत–पुत्र को शाप सारे
इन असामाजिक प्रथाओं
में फँसे चक्के हृदय के
मुक्त करना चाहती हूँ
सच बदलना चाहती हूँ
1
हे गगन के देवता
मुझको दिखा कर चाँद–तारे
रोक लोगे क्या मुझे तुम
फेंक कर तम–जाल सारे
तुम मुझे दे लो अमावस
में तुम्हें दूँगी दीवाली
मैं धरा पर एक नया
आकाश धरना चाहती हूँ
सब बदलना चाहती हूँ
सब बदलना चाहती हूँ
1
—जया पाठक

    

 

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