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बहुत दिन हुए, गाँव की माटी की
गंध लिए
बहुत दिन हुए, ठंडी पुरवा की सुगंध लिए
बहुत दिन हुए, अपनों के संग बातों का आनंद लिए
मन ने आज यादों की बारात निकाली,
घर आऊँ क्या?
आए फिर से दीवाली,
घर आऊँ क्या?
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बहुत दिन हुए, गौरैया का संगीत सुने
बहुत दिन हुए, नदी किनारे माँझी का गीत सुने
बहुत दिन हुए, दौड़ में कछुआ की जीत सुने
जिं.दगी ने आज भागमभाग से फुरसत पा ली,
घर आऊँ क्या?
आए फिर से दीवाली,
घर आऊँ क्या?
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बहुत दिन हुए, दोस्तों के संग नदी में नहाए
बहुत दिन हुए, ठहाके लगाए
बहुत दिन हुए, ह्यसच कहता हूँहृ,आँसू बहाए
आज दिल का कोना है खाली
घर आऊँ क्या?
आए फिर से दीवाली,
घर आऊँ क्या?
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बहुत दिन हुए, कोयल की कूक सुने
बहुत दिन हुए, जाड़ों की धूप लिए
बहुत दिन हुए, अपनी गाय का दूध पिए
हँसी शाम में आज छाए है लाली,
घर आऊँ क्या?
आए फिर से दीवाली,
घर आऊँ क्या?
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बहुत दिन हुए, थामे मन का दामन
बहुत दिन हुए, देखे घर का आँगन
बहुत दिन हुए, देखे प्यारी तिरछी चितवन
आम्र बौर से लदी झुक गए ड़ाली,
घर आऊँ क्या?
आए फिर से दीवाली,
घर आऊँ क्या?
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—मंजुल शुक्ला
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