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दीपावली महोत्सव
२००४

दिये जलाओ
संकलन

एक दीपक

 

एक दीपक मैं जलाऊँ प्रार्थना का
एक दीपक तुम जलाओ अर्चना का
स्नेह बाती सा मिले ये नेह अपना
हो प्रकाशित पथ हमारी भावना का

दीप तो कितने जलेंगे हर भवन
पर हमारा दीप हो शुभ कामना का
मन मंदिर में रूप प्रिय का देखने
प्रेम दीपक मैं जलाऊँ वन्दना का

हो न विचलित ज्योति झंझावात से.
तुम जलाना एक दीपक साधना का
इस अमा में दीप की ज्योति प्रखर हो
फल यही पाऊँ तेरी आराधना का

एक दीपक आज आ यदि तुम जला दो
गीत फिर से गा उठूँ प्रिय याचना का
ज्योति का तो लक्ष्य तम को जीतना है
मैं बनू दीपक तुम्हारे आँगना का

हर सकूं यदि तम सकल संसार का
मैं जलूँगा दीप बन सद्भावना का
बस यही है राग औ अनुराग मेरा
तुम रहो बस केन्द्र मेरी प्रेरणा का

—भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'

दीप जलाते रहना

दीवाली के
शुभ अवसर पर,
दीप से दीप जलाते रहना
मन–मंदिर के अँधियारे में,
प्रेम प्रदीप जलाते रहना

नफ़रत का
नारा दफना कर,
ईद हो या फिर हो दीवाली
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
प्रेम की ज्योत जलाते रहना

शांति–दूत
के स्वप्नों की,
अभिलाषा पूरी करनी है
अस्तित्व न हो कोई दुख का,
समता दीप जलाते रहना

शिशु हैं
भावी की आशाएँ,
बीच राह में भटक न जाएँ
दीपक का संदेश सुना कर,
अंतर्ज्योति जलाते रहना

दूर नगर से
निर्जन वन में,
एक कुटी है, भूल न जाना
मर्म–वेदना भटक रही है,
आशा दीप जलाते रहना

दीवाली के
शुभ अवसर पर,
दीप से दीप जलाते रहना

—महावीर शर्मा

    

 

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