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अनगिन प्रीति–प्रदीप जलाएँ
आओ ! दीपावली मनाएँ
स्नेह स्नेह का हृदय वत्र्तिका
बन जाए नवयुग प्रवत्र्तिका
विश्व–प्रेम की ज्वाल ज्वलित कर
जीवन–जग से तिमिर हटाएँ
पावस गई शरद ऋतु आई
शस्य श्यामला भू मुस्काई
नवस्येष्टि प्रभु को अर्पित कर
प्रिय ! वसुधा से भूख मिटाएँ
अपना और पराया भूलें
देकर प्यार हृदय हर छू लें
घोर निराशा का तम हर हर
उर में आशा – दीप जलाएँ
हर संभव कटुता का क्षय हो
तम पर चिर प्रकाश की जय हो
दानवता कर पूर्ण पराजित
मानवता–जय–ध्वज फहराएँ
—प्रो हरिशंकर आदेश
(महारानी दमयंती महाकाव्य सेह)
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दीप जल उठे
दीप जल उठे
रोशनी चहक उठी
यों सजी गली गली
कालिमा सिसक उठी
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हर जगह
उजास है
प्यार का संदेश है
यों जली दीप लड़ी
ज्योति जगमगा उठी
1
रश्मियाँ
खिल उठीं
जय किरण हुलस उठी
श्रीगणेश यों हुआ
विघ्न सारे टल गए
1
सज गए हैं
द्वार द्वार
किरन हँसी मदिर मदिर
हाथ श्रद्धा से जुड़े
द्वार सुभग श्री खड़ी
1
सर्व जगत
शांति हो
सबके मन में तोष हो
दुख दरिद्र दूर हो
और हो सदभावना
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प्रीति का
दिया जले
द्वार द्वार साथियों
बैरी भी सुमीत हो
धाम धाम निहाल हो
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—उषा राजे सक्सेना |