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दीपावली महोत्सव
२००४

दिये जलाओ
संकलन

        दीपों का पर्व

Ñ1अबकी दीपों का पर्व ऐसे मनाया जाए
मन के आँगन में भी एक दीप जलाया जाए

रोशनी गाँव में, दिल्ली से ले आया जाए
कैद सूरज को अब आज़ाद कराया जाए

हिन्दू, मुस्लिम न, ईस्साई न, सिक्ख भाई
अपने औलाद को इंसान बनाया जाए

जिसमें भगवान, खुदा, गौड सभी साथ रहे
इस तरह का कोई देवास बनाया जाए

रोज दियरी है कहीं, रोज कहीं भूखमरी
काशॐ दुनिया से विषमता को मिटाया जाए

सूपचलनी को पटकने से भला क्या होगा?
श्रम की लाठी से दरिद्दर को भगाया जाए

लाख रस्ता हो कठिन, लाख दूर मंजिल हो
आस का फूल ही आँखों में उगाया जाए

जिनकी यादों में जले दिल के दिये की बाती
ए सखी, अब उसी "भावुक" को बुलाया जाए

—मनोज भावुक

 

फिर दिवाली है

कतारों में ज़मीन पर
आई है आज उतर
तारों की बारात
जड़ने हीरे मोती
एक काली चादर पर
छुप गया है चाँद आज
अँधेरी गुफ़ा में बहुत दूर
अमावस का जामा पहन
और भेजा है चाँदनी को
चुपके से अकेले तारों के संग
जब फुलझड़ियों की बरसात में
भीग रही काली ये रात
इठलाती खुशी फिर रही
सजधज कर हर गली
झर रही उमंग
बिखर रहा रंग
कि रात एक जो काली है
आज बहुत सुंदर मगर
सितारों से जगमगाती
दीयों से खिलखिलाती
हाँ आज फिर दिवाली है।

-मानसी चैटर्जी
 

   

 

 

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