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समस्याओं से तंग
जनतंत्र की सोच को समर्पित कविताओं का संकलन
    है देश समस्याओं से तंग देखिये
और उन्हें सूझता हुड़दंग देखिये।

ताकतें फौलाद सी लिये हुए हैं जो
आज उन पे चढ़ रहा है जंग देखिये।

जो हमारा है वहीं गन्तव्य आपका
दोंनों नहीं हैं राह पर संग देखिये।

कीचड़ उछालकर हम‚ होली मना रहे
पिचकारियों में नहीं है रंग देखिये।

शांति बनाये रक्खें जो लोग कह रहे
शांति उनकी बदौलत है भंग देखिये।

सियासी दाँव—पेच का है दृश्य देश में
हम देख देख हो रहे हैं दृग देखिये।

-महेश मूलचंदानी
२४ जनवरी २०११

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