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अनुभूति में सुदेषणा रूहान की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
इक रिश्ते का घर
परिक्रमा
मुझे क्षमा करना
यात्रा
सत्य

 

इक रिश्ते का घर...

ज़िन्दगी तब नहीं थी,
जब हम तुम साथ हँसे थे।
तब भी नहीं,
जब इक छतरी के नीचे हमने नीली बारिश देखी थी।
और वहाँ भी नहीं,
जहाँ अपनी हथेली पर तुम्हारा
हाथ लेकर मैंने कहा था,
"कितनी छोटी है "
और तुमने पलटकर कहा,
"हाँ! बिल्कुल तुम्हारे दिल जितना"
"छोटा दिल"
और ज़िन्दगी शायद तब भी
नहीं थी,
जब हम-तुम साथ रोये।
जब तुम हँसी,
मैं मुस्कुराया,
और फिर तुम हँसी
और मैं जोर से हँसा।
बस वही था शायद,
जो याद है आखिरी बार धडकनों की आवाज़...

सुनो,
ज़िन्दगी आज है,
जब हमने जाना कि रास्तों
के कुछ रास्ते अलग हैं
और ख़त्म नहीं होते वो,
ज़रा लम्बे हैं।
मेरे और तुम्हारे सब्र से ज्यादा
बराबरी पर चलना मुश्किल है।
थोडा तुम आगे, मैं पीछे
और कभी मैं आगे, तुम...
और तुम मेरे साथ
हमेशा!

जानो,
बारिशों में सूखते,
गर्मियों में भीगते,
और ठण्ड में सिमटकर चलना है ज़िन्दगी
साथ-साथ,
वाकई...

३ जून २०१३

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