अनुभूति में सर्वेश
शुक्ल की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
आस्था
कहाँ हो तुम
चाँद को न गहूँगा
तुम्हारे लिये
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आस्था
अवशेषों पर टिकी
आस्था की अंतिम ईंट भी
आज ढह गई
मगर मेरी तलाश
उस गीली मिट्टी की
जिस पर छपा कोई भी निशान
सदियों तक अपनी कहानी कहता है
आज पूरी हुई
आस्था की रोती आँखों के
गीलेपन से।
९ अक्तूबर २००५ |