अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रोली त्रिपाठी की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
राजनीतिज्ञ
समुद्र मंथन
 

 

समुद्र–मंथन

एक दिन हृदय में आया
समुद्र–मंथन का खयाल
तो मैं गई सागर के पास
पूछने उसका हालचाल
शांत, गंभीर मौन था सागर
समेटे बहुत कुछ भीतर

मेरी जिज्ञासा देख
सागर थोड़ा मुसकाया
अपने भीतर चल रहे
अंतद्र्वंद्व से अवगत कराया

यादों की परत खोलते
सागर बोला
कभी सोचता हूँ
पुराने समय को
तो कलेजा
मुँह तक आ जाता है
और मेरा उत्साह
ठंडा हो जाता है

मंथन के समय की पीड़ा
नहीं अपना एहसास जता पाती है
जब वर्तमान दौर के भ्रष्टाचार
और राजनीति की बात आती है

कभी कभी मैं अपने मन को
आशावान बना लेता हूँ
निराशा से तब मैं अपने दामन
को बचा लेता हूँ

उन्मुक्त हो उत्साह से
लेता हूँ ऊँची हिलोरें
जगा देना चाहता हूँ
सभी के ज़मीर को
एक एक ग़रीब को
हज़ारों अमीर को

तब सब मुझे तूफ़ान मान लेते हैं
मेरे उत्साह की हिलोरों को
बर्बादी का कारण
जान लेते हैं

यह सब देख
पुनः हो जाता हूँ मौन
अब समझ नहीं आता
कितना दोषी कौन

मैं जो सोए हुए को
जगा नहीं पा रहा
या वो जो जागकर भी
जागना नहीं चाह रहा

९ फरवरी २००५

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter