अनुभूति में
मयंक कुमार वैद्य की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
अनंत से अनंत की ओर
एक इंच मुसकान
एक कतरा धूप
जिंदा लम्हा
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एक इंच मुस्कान
राह किनारे बैठी
बुढिया सबके मन को टोह रही थी
अश्रुपूरित निज नयनों से नयनों में कुछ खोज रही थी
कोई संवेदित मन का न लगा सका अनुमान…
कभी कहीं पर तो मिल जाती
एक इंच मुस्कान
आते जाते पथिकों से है प्रश्न मात्र केवल इतना
कुपुत्र शृंखला की कड़ियों में और इजाफा है कितना
इससे तो बेहतर था जो वह होती निःसंतान
कभी कहीं पर तो मिल जाती
एक इंच मुस्कान
चेहरे पर झुर्रियों से उसके वक्त ने है इतिहास लिखा
पुत्रनेह ने सब कुछ छीना भीने भीने स्वप्न दिखा
स्वार्थ लाभ की खातिर आज सब बन बैठे हैं स्वान
कभी कहीं पर तो मिल जाती
एक इंच मुस्कान
इस बूढी माँ की व्यथा आज घर घर की बनी कहानी है
पुत्र श्रवण की कथा आज लगती सबको बेमानी है
इन बातों का नव-पीढ़ी को कौन कराये ज्ञान
कभी कहीं पर तो मिल
जाती एक इंच मुस्कान
९ अप्रैल २०१२
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