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अनुभूति में अमित माथुर की
रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कल्लों में भरते हैं
मुफ्त मिलती हैं
सही समय पर गए

 

 

सही समय पर गए

घर का दरवाज़ा खट खटाया
घर की लक्ष्मी को
एक भिखारी नजर आया
'क्या है?'
चिरपरिचित प्रश्न फेंका
भिखारी थोड़ा हँसा
थोड़ा झेंपा
'माई ऐसे डाँटो मत
किस्मत का सताया हूँ
सेल्समैन नहीं हूँ
भीख माँगने आया हूँ
कोई भी दे दो पुरानी चीज
साहब की कोई कमीज।'
औरत ने सोचा
भिखारी को टालूँ
या पति अभी अभी गुजरे हैं
उनकी कमीज दे डालूँ
अंदर से
कुछ देर में आई
और भिखारी को
एक फटी हुई कमीज
ये कह कर थमाई
'मेरे पति तो हैं नहीं
इसे तुम ले लो भाई'
भिखारी ने
कमीज को देखा
और छोड़ा ना मौका
बोला
'हम सच्ची बात बताए हैं
आपके पति सही समय पर गए हैं।'

१ जुलाई २००१

 

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