अनुभूति में
अजय निदान की
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आदमी
किसने बोया
पुरुष प्रश्नचिह्न
सार्थक आधार
मेरी प्रेरणा
क़ाबिल
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क़ाबिल
जिस रोज़ मैं ज़िंदगी के
रास्ते से गुज़रा तो
मेरी ठोकर में
एक पत्थर आया
जिसे आज तुमने
गलती से ही सही
ठोकर मारी है,
कही कल वो तुम्हारी नज़र में
इतनी ऊँचाई से मिले कि
तुम उससे नज़रें मिलाने
के काबिल न रहो।
२१ अप्रैल २००८
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