अनुभूति में
अभय कुमार यादव की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
अतीत से सीख
ज़रूरत
संघर्ष तिमिर
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संघर्ष तिमिर
अपना प्रतिरूप लिए खुद ही बढ़ता रहता हूँ
जीवन है बस संघर्ष
युद्ध कहता रहता हूँ।
जाने कितने हारे
हार कर बने मेरा ही रूप
कोई अपनों से, कोई अन्य से
अनगिनत तो हारे मधुशाला की मय से,
हर लम्हा अपना दर्द भरा कहता रहता हूँ
अपना प्रतिरूप लिए खुद ही बढ़ता रहता हूँ .
बस उन्ही तीन परिपुष्ट महाचक्रो में फँसकर
मुझसे मेरे श्रम की बूँदे
बहती प्रपात बनकर
दिनकर के तपिश भरे दिन में
इंतज़ार सावन का,
करता रहता हूँ।
अपना प्रतिरूप लिए खुद ही बढ़ता रहता हूँ,
जीवन है संघर्ष रूप कहता रहता हूँ।
९ फरवरी २००५
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