अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डॉ. मीना अग्रवाल की रचनाएँ

नये मुक्तक-
चुक जाएगी इक रोज

मुक्तक में-
मुक्तक
सात मुक्तक

  चुक जाएगी इक रोज

एक

चुक जाएगी इक रोज़ यह दौलत तेरी
रह जाएगी बाक़ी न ये ताक़त तेरी
भगवान से लेनी है तो हिम्मत ले ले
साथ कुछ होगी तो बस हिम्मत तेरी

दो

सूरज की चमकार सिर्फ़ गगन में कब है
सीमित कोई महकार चमन में कब है
अपनत्व से बन जाती है दुनिया अपनी
जो प्रेम में ताक़त है वह धन में कब है

तीन

दरियाओं में बहता हुआ ठंडा पानी
चट्टान से मैदान तक आता पानी
स्वभाव में कोमल है मगर काट में तेज़
पत्थर को बना देता है सुरमा पानी

चार

जीवन का सरोकार न जाने देना
अच्छे जो हों आसार न जाने देना
इक लम्हे में सदियों के छिपे हैं संकेत
क लम्हे को भी बेकार न जाने देना

पाँच

अंधे के लिए दिन का उजाला बेकार
साहस न हो चलने का तो रस्ता बेकार
विश्वास अगर खुद पर नहीं है तुमको
इस हाल में आँखों पर भरोसा बेकार

छह

यह स्वप्न न देखो कि दुनिया बदले
अच्छा हो कि जीवन का तरीका बदले
भगवान को विपदा के लिए दोष न दो
हम आप जो बदलें तो विधाता बदले

७ मई २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter