चुक जाएगी इक रोज
एक
चुक जाएगी इक रोज़ यह दौलत तेरी
रह जाएगी बाक़ी न ये ताक़त तेरी
भगवान से लेनी है तो हिम्मत ले ले
साथ कुछ होगी तो बस हिम्मत तेरी
दो
सूरज की चमकार सिर्फ़ गगन में कब है
सीमित कोई महकार चमन में कब है
अपनत्व से बन जाती है दुनिया अपनी
जो प्रेम में ताक़त है वह धन में कब है
तीन
दरियाओं में बहता हुआ ठंडा पानी
चट्टान से मैदान तक आता पानी
स्वभाव में कोमल है मगर काट में तेज़
पत्थर को बना देता है सुरमा पानी
चार
जीवन का सरोकार न जाने देना
अच्छे जो हों आसार न जाने देना
इक लम्हे में सदियों के छिपे हैं संकेत
इक लम्हे को भी बेकार न
जाने देना
पाँच
अंधे के लिए दिन का उजाला बेकार
साहस न हो चलने का तो रस्ता बेकार
विश्वास अगर खुद पर नहीं है तुमको
इस हाल में आँखों पर भरोसा बेकार
छह
यह स्वप्न न देखो कि दुनिया बदले
अच्छा हो कि जीवन का तरीका बदले
भगवान को विपदा के लिए दोष न दो
हम आप जो बदलें तो विधाता बदले
७ मई २०१२ |