अनुभूति में
टीकमचंद ढोडरिया की रचनाएँ-
दोहों में-
बिटिया की मुसकान
कुंडलिया में-
नवल प्रभात
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नवल प्रभात
१
अरुणाई छाई प्रिये, बीती श्यामल रात
किरणें फैलीं चतुर्दिश, आया नवल प्रभात
आया नवल प्रभात, सजे सबके घर आँगन
खुशियों की सौगात, दिवस यह लाया पावन
पंछी गायें गीत, प्रकृति सारी हरषाई
उठो अलस को छोड़, प्रिये छाई अरुणाई
२
जब तक सबके हाथ को, नहीं मिलेगा काम
कैसे होगा देश में, अमन, चैन आराम
अमन, चैन, आराम, भूख समझेगी कैसे
जली पेट में आग, बुझेगी बोलो कैसे
कह 'चंदर ' कविराय, रहे बेकारी तब तक
जले द्रोह की अग्नि, सभी के मन में जब तक
३
मन का दर्पण माँजकर, माया ठगिनी छोड़
सुन्दर शुभ सत्कर्म से, अपना नाता जोड़
अपना नाता जोड़, बना ले मन को पावन
खुद आयेंगे ईश, दौड़कर तेरे आँगन
कह 'चंदर' कविराय, सार इतना जीवन का
कभी न रहता ठीक, भटकना मानव मन का
४
सावन ऋतु आयी प्रिये, रिमझिम पड़े फुहार
पवन बजाये बाँसुरी, गाये मेघ मल्हार
गाये मेघ मल्हार, प्रकृति ने ली अँगड़ाई
गए विरह दिनमान, मिलन की बेला आई
कह 'चंदर' कविराय, खिल उठे सबके आनन
सरसाये सब गात, मधुर मादक यह सावन
५
ठिठुरन वाले दिन गए, आया फागुन मास
किरणे फैलीं प्रीति की, छाया नव उल्लास
छाया नव उल्लास, प्रेम के उमड़े गाने
कलियों का नवरूप, भ्रमर आये मडराने
कह 'चंदर' कविराय, पहन परिधान निराले
हँसकर बोला बाग़, गए दिन ठिठुरन वाले
३ फरवरी २०१४
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