अनुभूति में
विष्णु विराट की रचनाएँ-
कविताओं में-
कुछ व्यथित सी
प्यार की चर्चा करें
राजा युधिष्ठिर
रोशनी के वृक्ष
वनबिलाव
व्याघ्रटोले की सभाएँ
वेदों के मंत्र हैं
शेष सन्नाटा
सुमिरनी है पितामह की
संकलन में-
ममतामयी-
माँ तुम्हारी याद
पिता की तस्वीर-
पिता
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शेष सन्नाटा
शेष सन्नाटा बड़ा बेचैन करता
उग रहा जंगल
भयावह-सा दिलों में।
वह हलाकू हो कि
या चंगेज हिटलर
उड़ गए बादल धुएँ के आँधियों में
सोच अपने स्वप्न हैं
पीयूष-वृष्टा
ग्रस्त लोग समस्त हैं
किन व्याधियों में?
थी जहां नूरेजहाँ
मुमताज़ की रंगीन खुशबू
गठरियाँ सूखे गुलाबों की मिलेंगी
उन क़िलों में।
गढ़ रहे गणराज्य वैशाली नगर में
बांध घुंघरू नगर वधुएँ
नाचती हैं
हँस रही संभ्रांत विषकन्या
महल में
गाँव भर की जन्मपत्री
बाँचती हैं
हाथ से छूटे कबूतर देखकर
बूढ़ा शहनशाह
पीसता है दांत
गुर्राता शराबी महफ़िलों में।
१ जनवरी २००६
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