अनुभूति में
डॉ. विनय मिश्र की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अभी भी धूप में गर्मी
कैसे सपने बुन रहे हैं
लोग सयानों में निकले
वो सफर में साथ है
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वो सफ़र में
साथ है
वो सफ़र में साथ है इस अदाकारी के साथ
जैसे हो मासूम कातिल पूरी तैयारी के साथ।
मत कुरेदो ये बुझी-सी राख दिखती है मगर
इसके भीतर हैं दबे जज़्बात चिनगारी के साथ।
आ गई हुस्नो अदा की रौनकें बाज़ार में
घर की यादें रह गईं बस रंगे फ़नकारी के साथ।
ये सियासत का करिश्मा है हमारे दौर में
तख़्त पर बैठा हुआ विश्वास गद्दारी के साथ।
मौत से भी वो कहीं ज़्यादा मरा है उम्र भर
जान फिर भी जाएगी इक रोज़ बीमारी के साथ।
३ दिसंबर २०१२ |