क्यों नहीं ये
अश्रु बहते क्यों नहीं
ये अश्रु बहते
नयन भिंगाते रक्त-संबंध
जिनमें बसी बस स्वार्थगंध
अपरिचित बन गए सब युगीन मोह माया सहते
क्यों नहीं ये अश्रु बहते
हृदय की यह पीडा कौन सुनें
क्यों कोई दर्द के कारण गुनें
एकाकी मन का भरम यह सब कोई अपना ही कहते
क्यों नहीं ये अश्रु बहते
जीवनोद्यान मरुथल बन गया है
सूख अब यह उद्यानवन गया है
मधुबन पर है पतझड सदियाँ हुई इसे महकते
क्यों नहीं ये अश्रु बहते
१८ जनवरी २०१० |