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अनुभूति में शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान की रचनाएँ— 

गीतों में-
काली बिल्ली ढूँढ रही है
कुटी चली परदेश कमाने
खड़े नियामक मौन
दो रोटी की खातिर
पंख कटे पंछी निकले हैं

 

दो रोटी की खातिर

दो रोटी की खातिर कैसे-कैसे
किये करम
टके-टके पर बेचा हमने
अपना दीन-धरम

माँगे आग नहीं दी हमने
कभी पड़ोसी को
पूड़ी-पुआ खिलाया
बैठा घर में दोषी को
बदले रोज मुखौटे, झूठी
खाई रोज कसम

कोमल सम्‍बन्‍धों की
धरती पर बबूल बोया
स्‍वार्थ हुआ तो दुश्‍मन के भी
पैरों को धोया
रोज रचे घर से बाहर तक
नये-नये तिकड़म

साथी से ले कर्ज नहीं फिर
लौटाया उसको
माँगे पर उल्‍टे ही डाँटा
अबे दिया किसको
मातु-पिता से कुशल न पूछी
धोयी लाज-शरम

१६ मई २०११

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