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पतझर के अब दिन
पीपल बड़ बाहर बतियाते
सबकी नजर बचा
किसके साथ भला क्या होगा
पतझर के अब दिन।
अपने-अपने दिन हैं सबकी
रातें अपनी हैं।
बयनामे में लिखी हुई
सौगातें अपनी हैं।
साँस-साँस का लेखा जोखा
अवसर के अब दिन।
मुंशी बैठा कलम हाथ ले
लिखने आज रपट
बारीकी से समझ रहा है
माथे की सलवट
शेष बहुत कम लगते शायद
तरुवर के अब दिन
धरा, गगन, जल, अनल, पवन सब
माँग रहे हैं ऋण
हम तो पौरुष के हामी हैं
नहीं समझना तृण।
अभी जगे हैं, हम हैं दिनकर
दिनकर के अब दिन।
२७ जुलाई २०१५
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