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अनुभूति में डॉ. ओमप्रकाश सिंह की रचनाएँ

गीतों में-
आ गया आतंक
अरे हरिण मन
इंद्रप्रस्थ के लोग

संकलन में-
विजय पर्व- स्वर्ण लंकाएँ
वसंती हवा- फाल्गुन का गीत

 



 

` अरे हरिण मन

अरे हरिण मन!
चल, चंदन वन
गूँज रहा शहनाई से!

नव सपनों की झील
भला क्यों थर्राई है आँखों में
आँचल कहाँ चाँद का अटका
है बादल की शाखों में

अरे हरिण मन!
नाच रहा क्यों
वंशीवट पुरवाई से!

बाँट न लेंगे दर्द कंटीले
जंगल के हरियल पत्ते
कोहरे की औकात है कितनी
सूरज को आकर ढक ले

अरे हरिण मन!
खेल रहा क्यों
केहरि की तरुणाई से!

जितने मन से चाल चला तू
उतनी ही दूरी तय की
सपनों से सपनों तक
उलझे-उलझे ही पूरी वय की

अरे हरिण मन!
भाग रहा तू
अपनी ही परछाँई से!

८ मार्च २०१०

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