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अनुभूति में कृष्ण बिहारीलाल पाण्डेय की रचनाएँ-

गीतों में-
अपना समय लिखा

गुणगान की अन्त्याक्षरी में
ज्योतिषी जी कह रहे हैं
नदी के खास वंशज
है कथानक सभी का वही

 

अपना समय लिखा

जब जब खुद को
लिखने बैठे अपना समय लिखा
अच्छा नहीं लिखा लेकिन, जो सच था
अभय लिखा

बड़े बड़े प्रस्थान
चले पर थोड़ी दूर चले
चलते रहे विमर्श मगर निष्कर्ष नही निकले
हम क्या अभी आधुनिक होंगे सोच विचारों में
बन्द किताबों से बाहर हम
निकलें तो पहले

ऐसे लोग
सभी समयों में होते आये हैं
जिनने घने तिमिर को भी सूरज का
उदय लिखा

आधा वर्तमान
खोया है त्रासद यादों में
संवादों के बदले खबरें मिली विवादों में
सिर्फ मंच पर नहीं हर जगह अभिनय ही अभिनय
जाने कितना कपट छिपा है
नेक इरादों में

फिर भी
कुछ संवेदन बाकी हैं अब भी जिनसे
हर आँसू की परिभाषा में हमने
हृदय लिखा

विज्ञापन में
बसने वालों का क्या कहना है
भूखी आत्माओं को सब ऐसे ही सहना है
कबिरा तुम तो लिये लुकाठी निकल पड़े घर से
हमको तो बाजारों में आजीवन
रहना है

जीवित तो
रहना था जैसे भी होता आखिर
इसीलिए अपनी पराजयों को भी
विजय लिखा

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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