अनुभूति में
कौशलेन्द्र
की रचनाएँ-
गीतों में-
डूब गए आँखों में
हिल उठा हूँ
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हिल उठा हूँ
हिल उठा हूँ
देखकर इस दौर को
पाँव के नीचे पड़े शिरमौर को
मुँह बड़े हैं
बात छोटी,
रात भी-
सेंकती रोटी
छीनते हैं लोभ-
मुँह के कौर को
हिल उठा हूँ देखकर...
आँख में-
अंधी गली है,
यह-
नज़र की बेकली है
हमसे मिलकर
देखती है और को
हिल उठा हूँ देखकर...
कदम छोटे
कद बड़े हैं,
लोभ भी-
क्या अनगढ़े हैं,
अनगढ़ों के-
ठिकानों को ठौर को
हिल उठा हूँ देखकर...
७ दिसंबर २००९ |