अनुभूति में
जीवन यदु
की रचनाएँ-
गीतों में-
मुझे है अनुभव
सच |
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मुझे
है अनुभव
अब तक कुछ भी लिखा
ना तुमने, मेरा मन मुझसे कहता है,
मन का कहा मैं सुन लेता हूं, मुझे है अनुभव सच
सुनने का।
कण -कण को मैं रहा जोड़ता, जीवन की उपलब्धि मानकर,
जुड़ते- जुड़ते कभी बना वह, एक इमारत अलग बात है।
जब भी शब्दों को गूँथा है, अनुभव के धागे में
साथी,
लोगों ने कह दिया बनी है, सही इबारत अलग बात है।
अलग बात यह भी, विस्फोटक रूप धरा है, कभी कणों ने,
मैं कणाद तो नहीं हूँ, लेकिन मुझे है अनुभव कण
चुनने का।
कभी जरूरत पड़ी सूर्य को, कहाँ माँगता आग फिरेगा,
इसीलिए बस जला रखी है, शब्दों की भट्ठी सीने में।
कविता करने यदि बैठा तो, एक महाभारत लिखूँगा,
पर मुझको खटना पड़ता है, कविता को मर- मर जीने
में।
जीवन से कुछ समय चुराकर, अगर कभी कुछ बुनने बैठा,
कुछ ना कुछ बुन लिया हमेशा, मुझे है अनुभव कुछ
बुनने का।
बहुत जरूरी लगता मुझको, उन लोगों की बाते सुनना,
कथा- उपन्यासों में जिनको, अब तक नहीं प्रवेश मिला
है।
कोशिश करता हूँ पढने की, उनका मानस- ग्रंथ खोलकर,
आजादी के बाद भी जिनको, अब तक नहीं स्वदेश मिला
है।
आत्मीयता से भरकर मैं, सुन लेता हूं उनकी बातें,
फिर गुनता हूँ उन बातों को, मुझे है अनुभव यूँ
बुनने का।
१ जनवरी २००१
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