अनुभूति में
आचार्य
भगवत दुबे की रचनाएँ-
गीतों में-
आप बड़े हैं
ऋचाएँ
प्रणय-पुराणों की
झोंपड़ी के कत्ल का संशय हुआ है
नींद जाने कब खुलेगी
साँड़ तगादों के
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आप बड़े हैं
आप निगलते सूर्य समूचा
अपने मुँह मिट्ठू बनते हैं,
हमने माना
आप बड़े हैं!
पुरखों की
उर्वरा भूमि से यश की फसल आपने पायी,
अपनी महनत से, बंजर में हमने थोड़ी
फसल उगाई।
हम ज़मीन पर पाँव रखे हैं,
पर, काँधों पर
आप चढ़े हैं!
किंचित किरणों
को हम तरसे आप निगलते सूर्य समूचा,
बाँह पसारे मिला अँधेरा उजियारे ने
हाल न पूछा।
आप मनाते दीपावलियाँ
लेकिन हमने
दीप गढ़े हैं!
भ्रष्ट, घिनौनी
करतूतों से तुमने अर्जित कीं उपाधियाँ,
भूख, गरीबी, लाचारी की हमें पैतृक
मिलीं व्याधियाँ।
तुमने, ग्रन्थ सूदखोरी के
हमने तो बस
कर्ज़ पढ़े हैं!
३ दिसंबर २०१२
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