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अनुभूति में अमित कुलश्रेष्ठ की रचनाएँ-

गीतों में-
आओ बैठें
काँच-सी है जिंदगी
मुझे जो छू लिया तूने

 

काँच-सी है जिंदगी

काँच-सी है हर खुशी, काँच-सी है जिंदगी।
एक ठोकर जो लगे तो टूटती है जिंदगी।।

रोज मिलकर मिल नहीं पाते, साथ है पर साथी नहीं,
प्रीत की बूँदें अब बरसकर हमें भिंगा पाती नहीं,
नर्म हथेली पर पारे-सी, तेरी-मेरी है जिंदगी।
काँच-सी है हर खुशी, काँच-सी है जिंदगी।

तितलियों के पंखों पर बिजलियों का डेरा है,
बच्चों के आँचल पर किसने उघड़ा आँचल उकेरा है,
चिपकी हुई उन आँखों में, भूख ही है जिंदगी।
काँच-सी है हर खुशी, काँच-सी है जिंदगी।

घुँघरुओं के बाजारों में बिक रही तकदीरें हैं,
पानी पर रंगोली-सी बिगड़ी हुई तकदीरें हैं,
चटके हुए हैं प्याले सारे, तो भी छलकती है जिंदगी।
काँच-सी है हर खुशी, काँच-सी है जिंदगी।

मिलना , मिलकर बिछड़ जाना, जीवन की रीत है,
आँख से आँसू-सा चुप-चुप बहता मेरा गीत है,
दो साँसों के सफर में कितनी टूटा करती है जिंदगी।
काँच-सी है हर खुशी, काँच – सी है जिंदगी।

७ जून २०१०

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