अनुभूति में
श्रीकृष्ण सरल की रचनाएँ-
कविताओं में-
आँसू
छोड़ो लीक पुरानी
जवानी खुद अपनी पहचान
देश के सपने फूलें फलें
देश से प्यार
धरा की माटी बहुत महान
नेतृत्व
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है
पीड़ा का आनंद
प्रेम की पावन धारा
मत ठहरो
मुझमें ज्योति और जीवन है
वीर की तरह
शहीद
सैनिक
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प्रकृति कुछ पाठ
पढ़ाती है, प्रकृति कुछ
पाठ पढ़ाती है,
मार्ग वह हमें दिखाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।
नदी कहती है' बहो, बहो
जहाँ हो, पड़े न वहाँ रहो।
जहाँ गंतव्य, वहाँ जाओ,
पूर्णता जीवन की पाओ।
विश्व गति ही तो जीवन है,
अगति तो मृत्यु कहाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।
शैल कहतें है, शिखर बनो,
उठो ऊँचे, तुम खूब तनो।
ठोस आधार तुम्हारा हो,
विशिष्टिकरण सहारा हो।
रहो तुम सदा उर्ध्वगामी,
उर्ध्वता पूर्ण बनाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।
वृक्ष कहते हैं खूब फलो,
दान के पथ पर सदा चलो।
सभी को दो शीतल छाया,
पुण्य है सदा काम आया।
विनय से सिद्धि सुशोभित है,
अकड़ किसकी टिक पाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।
यही कहते रवि शशि चमको,
प्राप्त कर उज्ज्वलता दमको।
अंधेरे से संग्राम करो,
न खाली बैठो, काम करो।
काम जो अच्छे कर जाते,
याद उनकी रह जाती है।
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।
१६ जून २००५ |