हुआ क्या रात भर
हुआ क्या रात भर
कोई अगर सोया नहीं है
यही क्या कम कि उसने दिन अभी खोया नहीं है
उन्हीं को नींद की
चाहत कि सपने देखते जो
कटीला कंकड़ों का पथ कभी टोया नहीं है
हुआ क्या रात भर कोई अगर सोया नहीं है
गया है रंग बदल,
कि गंध में संकेत भी हैं
कि तुमने आँसुओं से घाव वह धोया नहीं है
यही क्या कम कि उसने दिन अभी खोया नहीं है
उदासी क्यों अभी
तक, और रूखापन वही क्यों
तुम्हारा मन किसी के स्नेह ने मोया नहीं है
हुआ क्या रात भर कोई अगर सोया नहीं है
सहूँ कैसे हज़ारों
रंग चेहरे पर चढ़े हैं
कि मैंने बोझ इतना तो कभी ढोया नहीं है
यही क्या कम कि उसने दिन अभी खोया नहीं है
न तो मंडित, न है
उन्नत, न जीवन में चमक आई
हृदय ने क्षण-कणों का हार संजोया नहीं है
हुआ क्या रात भर कोई अगर सोया नहीं है
भयंकर भीड़ जिसमें
हद नहीं है चिल्लपों की
यहाँ हर एक है कुछ इस तरह गोया नहीं है
यही क्या कम कि उसने दिन अभी खोया नहीं है
सुखी उसको समझिये
दु:ख को पहचानता जो
दुखी वह जो किसी की याद में रोया नहीं है
हुआ क्या रात भर कोई अगर सोया नहीं है |