अनुभूति में
अम्बिका प्रसाद 'दिव्य'
की रचनाएँ-
गीतों में-
आँखों के गीत
क्या विश्वास करें
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क्या विश्वास करे
जो है प्राण, वही जीवन में,
बन जाता है वाण कभी।
जीवन की है जटिल समस्या,
जिससे प्रेम किया जाता है,
दो वस्त्रों-सा, दो देहों को,
जिसमें साथ सिया जाता है,
बन जाता है वही पृथक् हो,
दुखदायी पाषाण कभी।
आँखों में जो खिलती आकर,
मंजु मोद की मदरिल कलियाँ,
वही आँसुओं से हैं बहती,
बनकर कभी पहाड़ी नदियाँ,
बनता सुख ही दुख है जिसका
किया स्वयं निर्माण कभी।
क्या विश्वास करे दुनिया का,
जो ऐसी है करवट लेती,
जो दिखता है यहाँ सत्य-सा,
कर सपने में परिणत देती,
सपने-सा ही अपना होना,
दिखता यहाँ प्रयाण कभी।
किससे मिले यहाँ जब मिलकर,
पीर बिछुड़ने की आ रोती,
आँखों से जब झरे यहाँ पर,
झरे आँसुओं के ही मोती,
हँसी रुलाने को ही आई,
कर न सकी कल्याण कभी।
सागर जैसी लहरें लेती,
जहाँ ठोस भी निर्दय घरिणी,
डगमग ही रहती है जब तक
पार न लगती जीवन तरिणी,
जहाँ प्राण ही वाण चलावें
संभव क्या निर्वाण कभी।
२१ सितंबर २००९ |