शैलेन्द्र शर्मा
नए दोहे-
रिश्ते
दोहों में-
तप से ही संसार में
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तप से ही संसार मे
कुछ हरियाली फूल कुछ, काँटों का विस्तार
कैक्टस का है बाग़ या, रिश्तों का संसार
दावा करते नेह का, किंतु चुभोते डंक
रिश्तों ने छोड़ा किसे, क्या राजा क्या रंक
रिश्तों के संसार का, यह कैसा दस्तूर
ज्यों-ज्यों बढ़ती दूरियाँ, दिल से होते दूर
जो रिश्ता जितना अधिक, अपने रहा करीब
जड़ी उसी ने पीठ पर, उतनी बड़ी सलीब
रिश्ते रिसते घाव से, बन जाएँ नासूर
उन्हें समय से कीजिए, काट-छाँट कर दूर
उनसे मुँह न चुराइए, करिए कभी न रोष
जिन रिश्तों से आपको मिलता हो परितोष
जिस रिश्तों से जगत में फैले धूप-सुगंध
उन रिश्तों से कीजिए हर पल-छिन अनुबंध।
१ दिसंबर २००८ |