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अनुभूति में सपना मांगलिक की रचनाएँ-

दोहों में-
चंदा तकता चाँदनी
जग के ठेकेदार

 

 

जग के ठेकेदार

ढोंग अनोखे रच रहे, जग के ठेकेदार
घूमें जोगी भेष में, अंटी में कलदार

दिल में कारगुजारियाँ, अधरों पर है मौन
ऐसे बगुला भगत को, पहचानेगा कौन?

सदकर्मों का तोड़ घट, जो जन पाप कमाय
उसको लाभ मिले नहीं और गाँठ लुट जाय

नितदिन बढ़ता जा रहा, जातिवाद का कोढ़
कितने हिस्सों में बंटें, मची हर तरफ होड़

नफरत डारो आँच में, दिल लो आप मिलाय
प्रेम भाव मन में रखो, दो अलगाव मिटाय

करो लालफीता खतम, हो ईमान बहाल
पूरे जल्दी काज हों, देश बने खुशहाल

नित दिन बढती जा रही, रिश्तों बीच खटास
लड्डू भी त्यौहार के, घोल सकें न मिठास

उर में गहरा जख्म हो, दवा न दे आराम
प्रेम पगे दो बोल ही, करें दवा का काम

१५ फरवरी २०१६

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