अनुभूति में
सरदार कल्याण सिंह
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नीति के दोहे
मज़दूर
मूर्ख दिवस
संकलन में—
ममतामयी—माँ के नाम
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शिक्षक दिवस मना रहे
शिक्षक दिवस मना रहे, गा शिक्षक के गीत।
हमें मिली जो सफलता, वह है उनकी जीत।।
गहन तिमिर की रात जब, करे हमें हैरान।
शिक्षक देता रोशनी, करके विद्या दान।।
तुम में छिपी महानता, वाह वाह शाबाश।
टीचर ने यह कह दिया, छूएँ हम आकाश।।
टीचर कहता बहुत कुछ, देता जो उत्साह।
जहाँ कहीं हम भटकते, वही दिखाता राह।।
शिक्षक हो महान तो, बनते शिष्य महान।
कहता यह इतिहास है, सुनें अगर श्रीमान।।
पढ़ीं किताबें बहुत सी, छोटे बड़े पुराण।
बिन शिक्षक के रहे हम, अधकचरे विद्वान।।
पूछो कैसे बने हम , बुद्विमान विद्वान।
हमने जीवन भर किया, शिक्षक का सम्मान।।
शिक्षक को धन्यवाद दें, दें कितना सम्मान।
जीना हमें सिखा रहे, करके विद्या दान।।
पाँच सितम्बर ने दिया, गुरूओं को सम्मान।
गुरूओं को अब चाहिये, रख लें इसका मान।।
बुद्विमान विद्वान था, था अच्छा इन्सान।
पर इक टीचर के बिना, हुआ फेल कल्यान।।
हर वर्ष में एक दिवस, हो शिक्षक के नाम।
चले उसे भी यह पता, किया भला कुछ काम।।
शिक्षक से शिक्षा मिली, सीख गये व्यवहार।
अब आया शिक्षक दिवस, क्या दें हम उपहार।।
३ सितंबर २०१२
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