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अनुभूति में डॉ परमजीत ओबेरॉय की रचनाएँ-

दो कविताएँ
शरीर घट में

 

शरीर घट में

शरीर घट में
आत्मारूपी यात्री का डेरा
यात्री जब चाहे चला जाए
उसका न कोई एक बसेरा।
घूम सर्व विश्व सागर में
मिला उसे न कहीं सवेरा
जन्म सवेरा
जवानी दोपहर
शाम संध्या
रात बुढ़ापा जान
लगे सब ओर अँधेरा
इन सब का ज्ञान है तुझेc
हे मानव
फिर भी मन न तेरा फिरा
भेद भाव और माया जाल में
बीत रहा यह जीवन तेरा
मनुष्य जन्म नहीं मिलना आसान
जान सब अनजान बना रहा तू
मन में ले चिंताओं का घेरा
अज्ञान धुंध में न दिखता तुझे
खोई सपना सुंदर सुनहला
कितने क्षण आए जागने के तेरे
सदा तूने है जिनसे मुख मोड़ा
इस झूठ और माया की दुनिया में
जीवन भर करता रहा तू
मेरा मेरा
अंत समय जब आएगा
रह जाएगा यहाँ सब तेरा
याद रख सदा
जाना पड़ेगा ईश द्वार में
खाली और अकेला
इस क्षणभंगुर शरीर से
करता रहा तू मोह बहुतेरा
पंचतत्वों का जो बना
था उसे सत्य मान
तू बहुत खेला।

1 सितंबर 2007

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