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अनुभूति में अमिताभ मित्रा की
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पंद्रह अगस्त

 

 

 

  पंद्रह अगस्

कभी हम याद करते है पंद्रह अगस्त को
पाँच साल की उम्र में तिरंगा खरीदने को
आतुर हो जाता था यह दिल
तिरंगे वाला चिल्लाता था
'पंद्रह अगस्त के तिरंगे ले लो
दस पैसे में आज़ादी को
अपने घर में ले लो'
दिवाली के पटाखों की तरह
पंद्रह अगस्त के तिरंगों की कीमत
हर साल बढ़ती गई
दस रुपए की पटाखे और दस रुपए के तिरंगों में
अब ना आता था मज़ा
खुशियों की कीमत दे रही थी वो हमें सज़ा
पिताजी ने एक दिन कह ही दिया
'बेटे न ख़रीदो तिरंगा अब
बच्चे नहीं रहे हो अब'
साल बीत गए
बड़े ज़रूर हो गए
पर आज़ादी के शिकंजों में
ग्रसित अब भी हम रहे रोज़
दिवाली के पटाखे
आज भी हम ख़रीदते हैं बड़े चाव से
पर बच्चों को ख़रीद कर नहीं देते हैं तिरंगा
क्योंकि
न आता है तिरंगे वाला
न आज़ादी को अब हम घर ला सकते हैं

१६ अगस्त २००६
 

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