इन्द्र
इन्द्र के हाथ लम्बे हैं
उसकी उँगलियों में हैं मोटी-मोटी
पन्ने की अंगूठियाँ और मिज़राब
बादलों-सा हल्का उसका परिधान है
वह समुद्रों को उठाकर बजाता है
सितार की तरह
मन्द गर्जन से भरा
वह दिगन्त-व्यापी स्वर
उफ़!
वहाँ पानी है
सातों समुद्रों
और निखिल नदियों का पानी है वहाँ
और यहाँ हमारे कंठ
स्वरहीन और सूखे हैं।
१८ फरवरी २०१३
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