अनुभूति में
उमाकांत मालवीय
की रचनाएँ-
एक चाय की चुस्की
गुज़र गया एक और दिन
झंडे रह जाएँगे, आदमी नहीं
टहनी पर फूल जब खिला
पल्लू की कोर दाब दाँत के तले
फूल
नहीं बदले गुलदस्तों के
यह अँजोरे पाख की एकादशी
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झंडे रह जाएँगे, आदमी नहीं
झंडे रह जाएँगे, आदमी नहीं,
इसलिए हमें सहेज लो, ममी, सही।
जीवित का तिरस्कार, पुजें
मक़बरे,
रीति यह तुम्हारी है, कौन क्या करे।
ताजमहल, पितृपक्ष, श्राद्ध सिलसिले,
रस्म यह अभी नहीं, कभी थमी नहीं।
शायद कल मानव की हों न सूरतें
शायद रह जाएँगी, हमी मूरतें।
आदम के शकलों की यादगार हम,
इसलिए, हमें सहेज लो, डमी सही।
पिरामिड, अजायबघर, शान हैं हमीं,
हमें देखभाल लो, नहीं ज़रा कमी।
प्रतिनिधि हम गत-आगत दोनों के हैं,
पथरायी आँखों में है नमी कहीं ?
24 अक्तूबर 2007
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