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अनुभूति में सुनीता ठाकुर की रचनाएँ

औरत के क्षितिज से
अपने हक़ के लिए
ठहरा हुआ पानी
धरती की कोख में
प्रयास

 

प्रयास

तालाब था
काई थी
ठहराव था
लोग थे- बाँचते तालाब का इतिहास
उसकी गहराई
उसका पाना
उसकी गंदगी और
अपना प्यास कोसते,
मैं थी-
मेरी तनहाई थी
हाथों में डले थे
फेंके-
फटी परतें
और देखा - निर्मल जल
झाँकता आकाश,
अब लोग थे
पत्थर थे
फटती हुई काई थी,
प्यास ललचाई थी,
बढ़ते हाथ थे,
और मैं थी. . .

16 मार्च 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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