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प्रयास
तालाब था
काई थी
ठहराव था
लोग थे- बाँचते तालाब का इतिहास
उसकी गहराई
उसका पाना
उसकी गंदगी और
अपना प्यास कोसते,
मैं थी-
मेरी तनहाई थी
हाथों में डले थे
फेंके-
फटी परतें
और देखा - निर्मल जल
झाँकता आकाश,
अब लोग थे
पत्थर थे
फटती हुई काई थी,
प्यास ललचाई थी,
बढ़ते हाथ थे,
और मैं थी. . .
16 मार्च 2007
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