अनुभूति में
शिखा गुप्ता की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
अँधेरा
अधूरी ख्वाहिशें
आमदनी
उम्मीद
सारा जहान |
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अधूरी ख्वाहिशें
रोज एक नई ख्वाहिश
सुबह जब निकलती हूँ
घर से
और चलती हूँ
यह सोच कर कि
मैं भी अपनी जरूरतों
को नई उम्मीदों को
कल की तरह नहीं
आज की तरह
जियूँगी
कल का कुछ
पता नहीं कभी आए न आए
फिर भी ख्वाइशों का
कोई ठहराव नहीं
हर रोज एक नई ख्वाइश
फिर से जन्म लेती है
और पहली अधूरी
ही रह जाती है।
१ अक्तूबर २०१५
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