अनुभूति में
सौरभ राय भगीरथ
की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
गाना गाया
चप्पल से लिपटी चाहतें
जूते
भौतिकी
संतुलन |
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भौतिकी
याद हैं वो दिन संदीपन
जब हम रात भर जाग कर हल करते थे
रेसनिक हेलिडे, एच सी वर्मा, इरोडोव ?
हम ढूँढते थे वो एक सूत्र
जिसमें उपलब्ध जानकारी डाल
हम सुलझा देना चाहते थे
अपनी भूख
पिता का पसीना
माँ की मेहनत
रोटी का संघर्ष
देश की गरीबी !
हम कभी
घर्षणहीन फर्श पर फिसलते
दो न्यूटन का बल आगे से लगता
कभी स्प्रिंग डाल कर
घंटों ऑक्सिलेट करते रहते
और पुली में लिपट कर
उछाल दिए जाते
प्रोजेक्टाइल बनाकर !
श्रोडिंगर के समीकरण
और हेसेनबर्ग की अनिश्चितता का
सही अर्थ
समझा था हमने।
सारे कणों को जोड़ने के बाद
अहसास हुआ था -
“अरे ! एक रोशनी तो छूट गयी !”
हमें ज्ञात हुआ था
इतना संघर्ष
हो सकता है बेकार
हमारे मेहनत का फल फूटेगा
महज़ तीन घंटे की एक परीक्षा में।
पर हम योगी थे
हमने फिज़िक्स में मिलाया था रियलपॉलिटिक !
हमने टकराते देखा था पृथ्वी से बृहस्पति को।
हमने सिद्ध किया था
कि सूरज को फ़र्क नहीं पड़ता
चाँद रहे न रहे।
राह चलती गाड़ी को देख
उसकी सुडौलता से अधिक
हम चर्चा करते रोलिंग फ़्रीक्शन की।
eiπ को हमने देखा था उसके श्रृंगार के परे
हमने बहती नदी में बर्नोली का सिद्धांत मिलाया था
हमने किसानों के हल में टॉर्क लगाकर जोते थे खेत।
हम दो समय यात्री थे
बिना काँटों वाली घड़ी पहन
प्रकाश वर्षों की यात्रा तय की थी हमने
‘उत्तर = तीन सेकंड’ लिखते हुए।
आज
वर्षों बाद
मेरी घड़ी में काँटे हैं
जो बहुत तेज़ दौड़ते हैं
जेब में फ़ोन, फ़ोन में पैसा, तुम्हारा नंबर है
पर तुमसे संपर्क नहीं है।
पेट में भूख नहीं, बदहज़मी है।
देश में गरीबी है।
सच कहूँ संदीपन- सूत्र तो मिला
समाधान नहीं।
१ अप्रैल २०१३ |