अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सतीश सागर की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
घाव
परिश्रम
समुद्र
सही सोच

 

 

घाव

हरी घास पर बैठना
हमें अच्छा लगता है
लेकिन
ऐसा क्यों होता है
कि
जब भी हम घास पर बैठते हैं
घास आराम देने की बजाय
चुभने लगती है
हम इसके खिलाफ
न्याय की माँग करते हैं
उनकी ओर से
जाँच होती है
और वक्तव्य प्रकाशित
कर दिया जाता है
कि
उन्हें यानी हमें
बैठने का तरीका ही
नहीं मालूम
संभव है, ये घास पर
न बैठकर काँटेदार
झाड़ियों पर बैठ जाते हैं
और भविष्य में ऐसा
न करने की
चेतावनी दे दी जाती है
लेकिन एक प्रश्न
कौंधता रहता है दिमाग में
कि
जब हम बैठते हैं
तो घास झाड़ी में बदल जाती है
और जब वे बैठते हैं
तो झाड़ी घास में
आखिर यह
कैसे हो जाता है!

१ दिसंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter