अनुभूति में
संजय कुंदन की रचनाएँ
कविताओं में
अधिकारी वंदना
ऐसा क्या न कहें या ऐसा क्या न करें
कुछ ऐसा था
गाइड
मित्र
यमुना तट पर छठ
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अधिकारी वंदना
हे अधिकारी
रहता हूँ हर पल सतर्क
कि मेरी क़मीज़ न दिखे
आपकी क़मीज़ से ज्यादा सफ़ेद
न चमके मेरे दाँत
आपके दाँतों से ज़्यादा
रखता हूँ ध्यान
कि न देखूँ आपसे ज़्यादा बुद्धिमान
इसलिए कस कर पकड़े रखता हूँ
बुद्धि की लगाम
हे अधिकारी
रहें आप प्रसन्न
सोचें अधिकार प्रदर्शन के
नित नये ढंग
हो सके तो करें मुझे अपमानित
एकदम नये तरीके से
हे अधिकारी
हे अवतारी
हे कृष्ण मुरारी
24 जुलाई 2007 |