अनुभूति में राजन स्वामी
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अधूरेपन का मसला
धूप से तप रहे जंगल
बातें
बुझा बुझा-सा
है
मुश्किल है
छंदमुक्त में-
चश्मा
जब पिताजी थे
नन्हीं बिटिया की डायरी से
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जब पिताजी थे
जब पिता जी थे
यह बात
उस वक़्त की है,
जब पिता जी थे,
और जब
पिता जी थे,
तब
बात ही कुछ और थी।
जब तक
पिता जी थे,
मैं बड़ा नहीं हुआ।
मेरी कनपटियों पर
स्याही, सफ़ेदी के लिए
जगह बनाने लगी,
मेरा माथा
मेरे सिर की तरफ़
अतिक्रमण करता बढ़ चला,
मेरे बड़े होते बच्चे
मुझे
'चुका' हुआ समझने लगे,
पर, मैं बड़ा नहीं हुआ,
मुझे बड़ा होना ही नहीं था,
क्योंकि तब
पिता जी थे।
फिर एक दिन
पिता जी नहीं रहे,
और उनकी चिता की राख
ठंडी होते-होते
मैं बड़ा हो गया।
२४ जून २००६ |