अनुभूति
में राघवेंद्र
तिवारी की
रचनाएँ-
कविताओं में-
चिड़िया
चुनाव
पेड़ का जंगल होना
सुबह
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पेड़ का जंगल होना
निरंतर पेड़ होते रहने पर हम
जंगल हो जाते हैं
पेड़ - अखबार है
पेड़ - सड़क है
पेड़ - मकान है
पेड़ - कुल मिलाकर
एक एहतियात है
उस सारे आदमी के लिए
जो भूखों मरता है
पेड़-रोटी हो जाता है
उस सारे आदमी के लिए जो
दिन भर तसला और गारे में रहता है
पेड़, पचहत्तर रुपए हो जाता है
उस सारे आदमी के लिए
बस रह जाती है तो सिर्फ़ एक औरत
पेड़, उसे क्यों नहीं कुछ हो पाता
वह भूखे हो
पेड़ के लौटने तक नहीं लगाती है काँछ
वह पेड़ के बच्चे की माँ होती है हर साल
वह पेड़ को केवल एक पेड़ मानती है
और पेड़
निरंतर पेड़ होते रहने पर
जंगल हो जाते हैं।
२४ नवंबर २०१४ २२ सितंबर २००८
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