घर से निकलते ही
घर से निकलते ही
हम एक लबादा ओढ़ लेते हैं
जो है नहीं
वह भी दिखाने को
कभी गम छिपाने को
कभी खुशियों के वास्ते
इक चादर झीनी सी रंगीन-सादा
सच के चेहरे पर लगाकर झूठ के मुखौटे
कभी पूरा कभी वो चेहरा आधा
कभी किसी से दिल लगाकर,
वफा से करके बेवफाई
उम्र भर निभाने का
इस वादा ओढ़ लेते हैं
घर से निकलते ही
हम एक लबादा ओढ़ लेते हैं
१६ मई २०११ |