अनुभूति में निर्मला सिंह की रचनाएँ -
कविताओं में- औरत विषुवत रेखा मैं मार दी जाऊँगी
उसमें एक नहीं चारों दिशाएँ हैं जब उठती है तब पूरब, जब सोती है तब पश्चिम, दिन भर खटती चलती है, उत्तर और दक्षिण-सी, सृष्टि के इस छोर से उस छोर तक, वह और कोई नहीं तुम्हारी माँ है, बहिन है, पत्नी है।
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