मैं मनुष्य हूँ
पूछो नहीं नाम मेरा
मैं बड़ा अभागा हूँ
मैं लक्ष्यहीन पंथहीन
राहों की छाया हूँ
मैंने कितने अनर्थ किए
कार्य कितने व्यर्थ किए
स्वार्थ अपने पूर्ण करने को
औरों के हक छीनने को
मनुष्य जन्म लेकर मैं आया हूँ
विकट संकट की प्रतिछाया हूँ
निद्रा मेरी अब टूटी है
जब जीर्ण शीर्ण संस्कृति बची है
चारों ओर अशांति मची है
देश अब इन भूतों के लिए खंडहर शेष
यह देश का अब चिह्न विशेष
कुरूप अब एक काया हूँ
क्योंकि मैं मनुष्य जन्म लेकर आया हूँ।
४ जुलाई २०११
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